'बसंत पंचमी' राजा भोज जयंती विशेषालेख
राजाओं के राजा, धराधीश राजा भोज


 


30 जनवरी 'बसंत पंचमी' राजा भोज जयंती विशेषालेख



      ( हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व विचारक )



    परमवीर राजा भोज का स्मरण होते ही सत्य, साहस, ज्ञान, कौशल और जलाभिंषेक का बोध होने लगता हैं। सम्यक् कालजयी बनकर भूतो न भविष्यति, राजा भोज यथा दूजा राजा की मीमांसा में राजा-महाराजाओं के देश में राजा भोज राजाओं के राजा कहलाएं। इनके राज में प्रजा को सच्चा न्याय और जीने का वाजिब हक मिला। ऐसे महाप्रतापी शूरवीर राजा भोज का जन्म बसंत पंचमी को संवत् 1037 में उज्जैन के परमार (पंवार) राजवंश में हुआ। उनके पिता सिंधुराज तथा माता महारानी सावित्री देवी थी। पत्नि महारानी लीलावती उन्हीं की तरह बहुत बडी विदुषी थी। उज्जैन, धार के परमार (पंवार) कुल के 24 राजाओं में वे नौवे राजा कहलाए जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुए। 


         अराध्य के शौर्य व ऐश्वर्य का अमर गुंजार युगिन पंवारों के मन-मन और जन-गन को मंत्रमुग्ध, संस्कारित तथा आत्मकेद्रिंत करेंगा। यथार्थ, पंवार राज वंशी राजा भोज का राजकाल 1000 से 1055 तक था। उन्होंने अपनी राजधानी उज्जैन से धार स्थांतरित की थी। राजा भोज पहले राजा हुए जिन्होंने भारतीय समाज को संगठित कर बाहरी हमलों का सामना किया। वे हिन्दु धर्म के संरक्षक थे। एक योद्धा की भांति हिन्दु धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्त्र हुंकार भरी। उन्होंने सोमनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम् आदि मंदिरों का नवनिर्माण कर धर्मपीठों को सशक्त बनाया था। उनकी मृत्यु 13 संवत् 1112 को हुई। पंवार वंश का पताका लहराकर धराधीश राजा भोज दैदिप्यमान आदर्श हिन्दु सम्राट के रूप में भारतीय इतिहास में अमर हो गए।